क्यों कोई साया पीछा सा करता लगता उसे ! क्या कोई यह वहम था ,या कोई गहरा राज़ ! वो आजकल डरने लगी थी| पर वो करे भी तो क्या? उसकी जॉब से उसका पूरा परिवार चलता था | वो ऐसे घर में बैठ जाएगी तो छोटू की पढ़ाई ,अम्मा का खर्च कैसे चल पायेगा? बाउजी की अचानक हुई एक्सीडेंट में मौत ने जैसे सबसे ज़िंदगी जीने की वजह ही छीन ली थी,वो तो भला हो शुभा का जो उसने अपने ऑफिसके कॉल सेंटर में उसकी जॉब लगवा दी ,हाँ इंटरव्यू पास करना पड़ा उसे| आज पर अपनी कमाई से घर का खर्चा तो देख ही सकती है|एक बार बाउजी की पेंशन शुरू हो जाये तो छोटू को किसी अच्छे कोर्स में एडमिशन करा देगी वो” सोंच कर निःश्वास सी ली |
घर भी आ गया है ,कितनी बार माँ को कहा है कि खाकर सो जाया करे ,उसकी शिफ्ट भी तो रात के नौ बजे छूटती है घर पहुँचते पहुँचते 11 बजते ही हैं ,पर वो मानती ही कहाँ है?
कैब घर के पास ही छोड़ता है ,गली में बस थोड़ी दूर ही अकेली जाती है और घर आ जाता है | धुप्प अँधेरे में थोड़ा डर तो उसे लगता है | इस गली की बच्चों के लिए बिजली के बल्ब पर अपना निशाना सटीक लगाना जैसे कोई उपलब्धि बन गया है | उफ्फ ! फिर दोनों तरफ घने पेड़ों का रात में और घना हो जाना!
आज माँ ने उसकी मन पसंद सब्जी बनाई है | रोटी को सब्जी में डुबाकर खाने का आनंद ही कुछ और है ,फिर सब्जी अगर भिंडी की हो तो क्या कहने ? डर जैसे छू ही हो जाता है | एक बार बिस्तर पर लेटती तो लगता जमाने भर की नींद आ गयी जैसे !अब तो कंपनी में एक साल होने आया | बस एक रात का डर छोड़ दे तो कुल मिलजुलाकर यह अनुभव अच्छा भीरहा और संतोषजनक भी | आखिर इसने उसके घर के चूल्हे को जलाये रखने में कितना योगदान दिया है|
Appraisal(मूल्यांकन) का समय था | उसने ख़ुशी ख़ुशी सारे फॉर्म भर दिए अब एकाध दिन में उसका फेस तो फेस इंटरव्यू होगा ,फिर सैलरी थोड़ी और बढ़ जाएगी | अंदर की ख़ुशी दबाये न दब रही थी | अगले दिन वो अपने ग्रुप लीडर के सामने थी | सारे सवालो का जवाब देतें कभी जबान सूखी भी तो उसने बस अपना घर का ख्याल किया ,और उसी जुडी ज़रूरतों का भी, और खोया हुआ आत्म विश्वास फिर से लौट आया | ग्रुप लीडर ने सारी बातें सुनी और अपना हाथ उसके हाथों पर रखकर कहा भी “Well done ! जल्दी ही आपको हमारा रिस्पांस मिलेगा ” | अच्छा लगा उसे |
आज टारगेट तक पहुँचने में दिल्ली दूर लग रही थी ,उसकी टीम को कहा गया कि ओवरटाइम करना होगा | आज फिर से लेट ,बेचारी अम्मा कितनी देर और जागेगी ? ऐसे में टीम लीडर आशुतोष ने उसे अपनी रिपोर्ट लेकर केबिन में आने का इशारा किया |
वैसे भी उसकी रिपोर्ट बाकियो से इतनी ख़राब नहीं थी पर नाकामयाबी तो नाकामयाबी ही थी | रिपोर्ट सामने रख बोल पड़ी
” सर बस थोड़ा सा ही रह गया है ,क्लाइंट्स पर रिस्पांस अच्छा है ,80% तो हो ही जायेगा |
रिपोर्ट को एक कोने में रखकर आशीष बोल पड़ा ” बस इसी कमरे में कैमरा नहीं ,इसलिए यहीं बुला लिया | साफ़ -साफ़ ही बोलता हूँ,काफी कमी है तुम्हारे काम में ,हाँ तुम्हारी सुंदरता में कोई उंगुली नहीं उठा सकता | तुम्हारे चुनाव में मेरा सपोर्ट भी बस इसलिए ही था कि मुझे भा गयी थी तुम ,पर नज़र में चढ़ गयी तुम विकास बाबू के भी!अब जब यहाँ की तनख्वाह की तुम्हे ज़रूरत है ,तो हमें भी तुम्हारी ज़रूरत है | अब जो केक मैं अकेले खाने की बात सोंच रहा था अब मिल बाँट कर खाना होगा | अब विकास भी बोल रहा था कि तुमसे जल्दी बात कर लूँ,इसलिए पुरी टीम को ही रोकना पड़ा | इस टीम की बाकि लड़कियां भी जानती है कि तुम यहाँ मुझसे क्या बात करने आयी हो ? तो बताओ कल विकास से कितने बजे की तुम्हारी मुलाकात फिक्स करूँ ?
जैसे किसने शरीर से जान निकाल दी हो किसीने !
“सर कैसी बात कर रहें है आप,आप दोनों की मैं बहुत इज़्ज़त करती हूँ | सर मैं मेहनत करने के लिए तैयार हूँ ,आप चाहे तो मेरी सैलरी में कोई बढ़ोतरी ना करें | सर मैं ऐसी लड़की नहीं सर ,मेरी घर की स्थिति देखकर ही मुझपर ऐसा दबाब मत डालें ” भरे गले से बोल पड़ी वो|
आशीष ने उसके हाथो को अपने हाथों से ज़ोर से मसलते हुए कहा ” कुछ नहीं होगा ,बस दो दिनों की बात है ,एक दिन विकास और एक दिन मेरा ,फिर हम भूल जायेंगे और तुम भी भूल जाना | चलो सबसे ज्यादा तरक्की दिलवाने की भी पैरवी करता हूँ ,सोंच कर एक दो दिन में ही जवाब दे दो ” आँखों में निर्लज़्ज़ता साफ़ दीख रही थी |
बाहर आकर टीम लीडर आशीष ने कहा कि “आप सब घर जा सकतें है ,रिपोर्ट ओके ही है|
इतना तनाव में हतप्रभ सी रमा घर तो आ गयी पर आज खाना गले से नहीं उतर रहा था | माँ की बातों का भी ठीक से जवाब नहीं दिया|रात में अपने माथे पर माँ की ठंडी उँगलियों का भी स्पर्श मह्सूस हुआ|शायद वो जानना चाहती थी कि कही उसे बुखार तो नहीं ?आज सामान्य सा कुछ नहीं था और वो भी नहीं!
इसलिए माँ की चिंता से ऊपर उसे अपनी मुश्किल लग रही थी|
सुबह छोटू ने धीरे से कहा ” दीदी मेरी इस महीने की फीस नहीं मिली ” कहती माँ बोल पड़ी ” अभी तंग मत कर उसे ,कह दे एक दो दिन में जमा करवा देगी दीदी,अभी थोड़े दिन ठहर जाये | सैलरी बढ़ने दे इस बार 6 महीने की नहीं साल की एक बार में जमा करा देंगे छोटू |
एक फीकी मुस्कान के साथ घर से निकल गयी रमा ! पैर मन भर भारी हो चले थे|
आज ऑफिस में बड़ा सा सन्नाटा था ,कम से कम उसे तो ऐसा ही लग रहा था | आशीष आज दूर से ही उसे काम करते देखता रहा | शरीर में एक कंपकपाहट सी हुई|क्या यह कोई बुरा सपना नहीं हो सकता ? क्या वो इस वास्तविकता को किसी इरेज़र से मिटा नहीं सकती?
सर पर भारी बोझ लिए घर लौट रही थी वो ! नींद से भारी पलके ,तनाव से भरा चेहरा ,घबराता हुआ मन जैसे जमाने भर का बीमार हो वो!आज भी रास्ते में पसरा सन्नाटा और धुप्प अँधेरा| हर कदम से मुश्किल से बढ़ते हुए और उसे लगा वो खड़ी नहीं हो पा रही ,और गश खाकर गिर पड़ी वो!
नहीं जमीन पर नहीं पर किसी के गिरफ्त में थी वो | बड़ी मज़बूत थी यह पकड़!
सर पर भारी बोझ लिए घर लौट रही थी वो ! नींद से भारी पलके ,तनाव से भरा चेहरा ,घबराता हुआ मन जैसे जमाने भर का बीमार हो वो ! आज भी रास्ते में पसरा सन्नाटा और धुप्प अँधेरा | हर कदम से मुश्किल से बढ़ते हुए और उसे लगा वो खड़ी नहीं हो पा रही ,और गश खाकर गिर पड़ी वो !नहीं जमीन पर नहीं पर किसी के गिरफ्त में थी वो | बड़ी मज़बूत थी यह पकड़ !
“आह “के साथ भारी सी पलके मुश्किल से ऊपर उठी | देखा बड़ा सा कमरा था | माँ वहीँ कुर्सी पर बैठी हुई थी और साथ में खड़ा था संजय !
कैसे भूल सकती है वो संजय को ? पुरे महल्ले में उसकी धूम मच गयी थी जब उसने बैंक P.O की परीक्षा निकाली थी और कुछ दिनों बाद उसके बाउजी उसका रिश्ता भी लेकर आये थे उसके यहाँ पर बाउजी ने मना कर दिया ” एक ही बेटी है हमारी ,ज़रा समय लेकर निर्णय लेंगे| फिर संजय की बाउजी ने उनसे कुछ नहीं पूछा क्युकी उन्हें पता चल चूका था कि उत्तर ना ही है | उनका सांवला बेटा आँखों को नहीं भाया उन्हें अपनी प्यारी सी बिटिया के लिए| संजय की माँ के जाने के बाद संजय की यह चाह पूरी नहीं कर पाये ,उन्हें इसका दुःख था ,पर सारी बातें अपने हाथ में तो नहीं होती | मन मसोस कर रह गए थे वो !
बाउजी के अंतिम क्रिया कर्म में शामिल हुए पर चुपचाप !फिर संजय भी सामने नहीं आया कभी | फिर वो भुला हुआ चैप्टर हो गया उसकी ज़िंदगी का | माँ को भी ख्याल में नहीं आया कभी ,बाउजी ने मना किया था ,तो अब उसपर वो सोंचना ही नहीं चाहती थी | और आज वही उसकी बेटी को बिना क्षति पहुंचाए पूरी सावधानी से जैसे रुई की फाओ सी उठाकर ले आया था | दौड़ कर डॉक्टर बुला लाया ,उसे बिना चिंता में डाले ,उनकी सेहत का भी का ख्याल रखा | छोटू को तो उसने बड़ी होशियारी से सोने के लिए तैयार कर लिया |
कहीं एक बड़ी गलती हो गयी थी उनसे ! साधारण से लगनेवाले चेहरे में असाधारण योग्यता भरी हुई थी | उसकी सौम्यता मन को कहीं ठंडक सी पहुंचा रही थी | डॉक्टर की सलाह पर, रमा कमज़ोर स्वास्थ्य की वजह से पुरे दो दिन रही संजय के घर |
सारी बातों के असर ने मिलकर बुखार में तपा रखा था उसे ,आँख भी ज़रूरत पर ही खोल पा रही थी|
ऐसे में सुधा आयी मिलने उससे |
“उसके तपते हाथों को अपने हाथ में लेकर कहा कि “चिंता मत कर ,मैं समझ सकती हूँ ,कोई न कोई रास्ता ज़रूर निकलेगा | ” कोई जवाब नहीं मिला उसे रमा से, बस कुछ देर रमा के साथ बिता कर जब वो जाने लगी तो संजय नेउसे रोककर दूसरे कमरे में ले जाकर
उससे सारी बातें पूछ ही ली | आखिर उसके गहरे भाव भरे आँखों से कुछ नहीं छुपा पाई वो ! उसके मन में गहराता चिंता का भी आभास मिला और सब बोल गयी वो !
सुबह गर्म दूध के साथ संजय ने उसका हाल पूछा | दो टुकड़े ब्रेड के सेंक करके आया था वो ,थोड़े कोने से जले हुए | पर उसकी गहरी आँखों में तैरता अनुग्रह को ठुकरा नहीं पाई वो ,और मन मारकर सब खा लिया | चुपचाप निकल गया वो फिर कमरे से |
दो दिन बाद उसका धन्यवाद कहकर निकल आयी वो | अभी भी कुछ कमज़ोरी थी | चार दिन घर बिताकर जब वो ऑफिस गयी वो उसके पर्स में तुड़ा मुड़ा त्यागपत्र भी था | शायद वो बहुत कमज़ोर लड़की थी | इस छोटे से शहर में एक एक चीज़ को संघर्ष करती वो शायद पहले से ही टूट चुकी थी | उसे पता था कि यहाँ सब कुछ इतना organised नहीं ,और वो शायद वो पुरे सिस्टम से लड़ नहीं सकती |
ऑफिस पहुंचकर नज़ारा बदला हुआ था | आशीष और विकास पर डिपार्टमेंटल इन्क्वायरी बैठ चुकी थी | संजय के बैंक में कंपनी के डायरेक्टर का अकाउंट था जो दिल्ली में रहता था | संजय ने खुद फ़ोन करके उसकी कंपनी में चल रही धांधली के विषय में बताया और सुधा और चित्रा से भी बात करवाई | कंपनी के बॉस को भी पता था कि अगर कार्यवाही जल्द नहीं की गयी ,तो उसकी कम्पनी समस्या में आ सकती है | दिल्ली से ही दो सीनियर काम करनेवालों ने उनकी जगह ले ली थी | कोई जादू सा हो गया था | बाद में सुधा से सारी बातों का
पता चला |
रात में कैब से उतरने के बाद सीधे संजय के घर जाने का सोंचा | आज फिर से एक साया पीछा करता सा लगा |
पर आज उसे डर नहीं लगा न तो अँधेरे से और ना साये का कोई खौफ ही लगा | पेड़ों के बीच में खुद को छिपाते हुए साये को देखकर आज चिल्ला उठी आज|
“कौन है वहां ,सामने आओ नहीं तो मैं आती हूँ ” सुनकर पेड़ों के घने साये के बीच से जाना पहचाना साया निकला ,वो कोई और नहीं संजय था |
“तुम ” चीख पड़ी वो |
“जबसे वो दिल्ली में भयानक दुर्घटना घटीहै और तुमने रात की नौकरी ज्वाइन की है ,मैं रोज़ तुम्हारे आने का और घर के अंदर जाने तक तुमपर नज़र रखता हूँ ” सर झुका कर संजय ने कहा |
अपने इस अनबोले ,प्यार की सीमा की नए हदें बनाता हुआ उसका यह भोला सा आशिक किसी परिचय का मोहताज था क्या ? उसकी धड़कने अब उसके दिल में धड़कने लगी थी ,रोक नहीं पायी खुद को सीने से लग गयी इस पगले को ,जो सिर्फ करता ही जाता है और कुछ चाहिए नहीं उसे !
“नहीं आप कुछ गलत नहीं समझिये ,भावनाओं में बह कर कुछ गलत न करे ” संजय ने उसे सँभालने की कोशिश की |
आज उसे कोई नहीं रोक सकता था उसे अपने हमसफर के चेहरे की खूबसूरती का अहसास हो चला था | अपनी पकड़ को मज़बूत करते हुए बस इतना कहा “अब अंधेरों के गहरे सायों से मैं घबराती नहीं ,उनमे ही मुझे भविष्य की किरणे दीख रही है ,आज मुझे मत रोको ” अब उसकी आवाज़ रुंधी हुई थी |
संजय ने इस बार उसे बाँहों के मज़बूत घेरे में ले लिया “घबड़ाने की ज़रूरत भी नहीं ,पर मैं चाहूंगा की तुम परिस्थिथियों से घबड़ाकर हार मत मानो बल्कि अंधेरो को चीरकर नयी रोशनी पैदा करो | रमा ने बस सहमति में अपना सर हिला दिया | अँधेरे अब उजाले में बदलते नज़र आ रहे थे !
बहुत अच्छी कहानी
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बधाई हो,लेखन खूबसूरत,भावपूर्ण रचना
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पहली पंक्ति से ही बांधकर रखा है आपने। शानदार लेखन ऐसे जैसे उपन्यास पढ़ रहे हों। प्रथम पंक्ति खत्म होती नही की बरबस आंखें अगली पंक्ति पर जाती रही। शानदार।👌👌👌
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बहुत सुन्दर शब्द चयन है आपका 🙏
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Thanks 🙂
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